सिंधी लोक गायकी की मिसाल व झूलेलाल के सेवादार स्व. चंद्र प्रकाश आहूजा की 7 वी पुण्यतिथि
स्व. चंद्र प्रकाश आहूजा, जिन्हें बबु भाई साब के नाम से भी जाना जाता था, बीकानेर सिंधी समाज में सेवा, संस्कार और लोक गायकी के प्रतीक थे। उन्होंने अमरलाल मंदिर और झूलेलाल जी की सेवा को अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य बना लिया था।
क्या मार सकेगी मौत तुझे औरों के लिए जो जीता है, मिलता है जहां का प्यार उसे औरों के जो आंसु पिता है...ये पंक्तिया किसी के उपर सटीक बैठती है , वो नाम बीकानेर सिंधी समाज मे एक ही नाम हमारे जेहन मे आता है, जो नाम याद आता है, वो नाम है, सेवा भक्ति के पर्याय, श्री चंद्र प्रकाश जी आहूजा...सेवा, सत्कार ,संस्कार के रूप मे अपने व्यवहार को साकार करते थे , , स्व. भाई साब. आदरणीय स्व. चंद्र जी आहूजा। बबु भाई साब के नाम से भी लोकप्रिय हम सब के आदरणीय दुलारे थे। अमरलाल मंदिर की सेवा के संस्कार बचपन से ही अपने पिता स्व. आत्माराम जी आहूजा से मिले..धीरे धीरे युवावस्था तक आते आते झूलण की सेवा मे यु जुड़ गये ,जैसे मीरा, श्री कृष्ण की भक्ति मे। उनकी सेवा और भक्ति मार्ग , हम सब के लिए आज भी प्रेरणादायक है ।
लोक गायकी में उच्च सुरों के सरताज
स्व. चंद्र प्रकाश जी बहराणा मंडली में गायक के रूप में उच्च सुरों के सरताज रहे। उनकी गायकी और झूलेलाल जी के गीत आज भी युवाओं के लिए प्रेरणादायक हैं। उनके साथ बहराणा मंडली के अन्य कलाकार जैसे गिरधर गौरवानी, ओम गंगवानी, देवानंद खेसवानी, राजू मोटवानी, हेमंत मूलचंदानी और हंसराज मूलचंदानी भी थे, जो आज भी उनके स्मरण में डूबे रहते हैं।
पवन पुरी मंदिर निर्माण में योगदान
स्व. चंद्र प्रकाश जी ने पवन पुरी के भव्य मंदिर के निर्माण में स्व. हीरालाल जी रिझवानी के साथ मिलकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । उन्होंने समाज की प्रतिभाओं को सम्मानित करने और उनकी सेवाओं को पहचान दिलाने के लिए श्री आत्मा राम आहूजा स्मृति पुरस्कार का आयोजन किया।
परिवारिक परंपरा का निर्वहन
स्व. चंद्र प्रकाश जी के संस्कारों की परिवारिक परंपरा आज भी कायम है। उनके पुत्र दीपक आहूजा (पप्पी भाई साहब), दिनेश आहूजा और धर्मपत्नी दीदी वीना आहूजा निरंतर झूलेलाल जी की सेवा और संस्कार से जुड़े हुए हैं।
अमरलाल मंदिर ट्रस्ट, बहराणा साहिब मंडली और समस्त सिंधी समाज स्व. चंद्र प्रकाश आहूजा जी को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धासुमन अर्पित करता है, जिन्होंने अपने जीवन में सेवा, संस्कार और लोक गायकी के माध्यम से अमूल्य योगदान दिया।