"डैली सोप" ने साबित किया कि सिंधी हास्य का जादू अभी भी बरकरार है

हास्य के रंग में रंगा रहा टाउन हॉल,
"डैली सोप" ने जीता दिल
जोधपुर. सिंधी कल्चरल सोसाइटी , जोधपुर द्वारा संस्कृति मंत्रालय,भारत सरकार, नई दिल्ली के सहयोग से वरिष्ठ रंगकर्मी हरिश देवनानी के मार्गनिर्देशन में आधुनिक सिंधी रंगमंच को मध्य नजर रखते हुए सिंधी हास्य नाटक "डैली सोप" का मंचन निरंजन असरानी के निर्देशन में जयनारायण व्यास स्मृति भवन टाउन हॉल जोधपुर में सफलतापूर्वक किया गया ।
आधुनिक रंगमंच के तहत सिंधी भाषा में हास्य से सराबोर, इस नाटक को रियलिस्टिक सेट के साथ मंचित किया गया।
सिंधी हास्य नाटक "डेली सोप" में दर्शाया गया कि हमारा दैनिक जीवन भी किताब का एक पन्ना है। नाटक में एक सामान्य परिवार जिसमें एक मेहनती व्यवसायी, साहसी पत्नी, एक विवाहित बेटी और एक बेटा है जो भविष्य की बेहतर संभावनाओं के लिए विदेश जा रहा है।
कहानी उस दिन शुरू होती है जब आदमी अपने व्यवसाय से सेवानिवृत्त होने का फैसला करता है। यह सोचकर कि वह पत्नी के साथ अच्छा समय बिता पाएगा, लेकिन पत्नी की कुछ और ही योजनाएँ हैं। उसने फैसला किया और एक पुजारी बन, अपने सामाजिक कार्यों में व्यस्त हो जाती है।
वह आदमी अपनी देखभाल के लिए घर पर अकेला रह जाता है।
मंच पर प्रस्तुत की जाने वाली हास्यास्पद परिस्थितियों ऐसी हो जाती हैं कि किसी को भी ऐसा लगता है कि यह उसके अपने जीवन में, या किसी पड़ोसी के साथ, या किसी ऐसे व्यक्ति के साथ हो रहा है जिसे हम करीब से जानते हैं।
बेटी मदद करने की कोशिश करती है। बेटा बताता है कि वह दूर होने के कारण उनके दैनिक विवादों को सुलझाने में मदद नहीं कर सकता। दोस्त मदद करने की कोशिश करता है । यह सब बहुत ही सूक्ष्म और मजाकिया तरीके से दर्शाया गया है। जिससे दर्शक प्रस्तुत की जा रही एक या दूसरी स्थितियों से खुद को जोड़ पाते हैं।
तनावपूर्ण स्थिति तब आती है, जब बहू को विदेश में नौकरी मिल जाती है। हास्यास्पद स्थिति तब बनती है जब प्रश्न उठता है कि पूरे दिन पोते की देखभाल कौन करेगा? दादी ने मजाकिया अंदाज में अकेले रहने का चुना है, जो एक ही समय में उत्साह और सहानुभूति दोनों के साथ दिल के तारों को खींचता है।
नाटक के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण के संदेश देने का भी प्रयास किया गया है। इसके लिए एक पेड़ मां के नाम लगाया जाए साथ ही नाटक के माध्यम से महिला सशक्तिकरण का भी संदेश दिया गया।
चुटीले संवादों एवम परिस्थिजनक व्यंग्य के माध्यम से
जया आसरानी (रोशनी), नीरू आसरानी(पवन),
लच्छू सचदेव(दौलत), प्रियंका आसवानी( प्रियंका), ने अपने संवादों एवं अदाकारी से दर्शकों को मंत्र मुग्ध कर ठहाके लगाने को मजबूर कर दिया।
दर्शकों ने नाटक की घटनाओं को अपने वास्तविक जीवन से जोड़ कर भरपूर आनन्द लिया। कलाकारों के जीवन्त अभिनय और मनोरंजन से सभागार ठहाकों और तालियों से गूँजता रहा।
पार्श्व संगीत लव्या नारवानी, रंगदीपन वैभव ठक्कर तथा सेट डिजाइनिंग मनोहर सिंह व मोहमद इमरान, राजेश की थी, नाटक में महेश संतानी, राजेंद्र खिलरानी, विजय भक्तानी,ललित खुशालानी, प्रकाश खेमानी, सीमा खिलरानी, सुशील मंगलानी, राजकुमार परमाणी, प्रदीप डांडवानी, हरीश देवनानी, विरमल हेमनानी, संदीप भूरानी, अशोक कृपलानी,प्रेम थडानी, राहुल ठकुरानी, स्मिता थडानी, लता धनवानी, किशोर लछवानी सहित अन्य कलाकारों की सक्रिय भागीदारी रही। नाटक का संचालन पूर्व अध्यक्ष रंगकर्मी गोविंद करमचंदानी ने किया।
इस मौके पर सिंधी समाज के गणमान्य व्यक्तियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई जिनमें कन्हैयालाल टेवानी,बलराम करमचंदानी, रमेश खटवानी, आशा उत्तमचंदानी, दीपा आसवानी, रीतिका मनवानी, मदन आईदासानी, गिरधारी पारदासानी, अशोक मूलचंदानी, सुनील मीरचंदानी, हरीश कारवानी, वासु खैराजानी, तीर्थ दोडवानी, लखमीचंद किशनानी, के डी इसरानी , दौलत राम करमचंदानी ,पूनम देवनानी, कन्हैयालाल सुखनानी, दीपक मोरदानी आदि मुख्य थे।