सिन्धी घरों पर होगी “हटड़ी” की पूजा एवं घर घर होंगे “मेलावड़ो” से रोशन

सिन्धी घरों पर होगी “हटड़ी” की पूजा एवं घर घर होंगे  “मेलावड़ो” से रोशन

देखें सिंधी समुदाय कैसे मनाता है दिवाली पूजन की जानकारी देते  सुरेश थदानी जी का विडियो 

 सिन्धी  समुदाय  द्वारा  भारत  में  ही नहीं  अपितु   पूरे   विश्व  में   दीपावली   का  पावन  पर्व   धूम  धाम  एवं  हर्षोल्लास  से  मनाया  जाता  है।  ज्यादातर  सिन्धी  समुदाय  व्यापारी   एवं  उद्योगपति  है।  सिन्धी  समाज  द्वारा  दिवाली  पर  “हटड़ी”  की  पूजा  की  जाती  है। “हटड़ी”  पूजा  का  विशेष  महत्व  है।  सिन्धी  समाज  में  मान्यता  है  कि  “हटड़ी”  का  पूजन  करने  से   व्यापार  उद्योग  कारोबार  में  बरकत  तरक़्क़ी  होती  है।   लगभग  5000  वर्ष  पुरानी  सिन्धी  सभ्यता  एवं  संस्कृति  में  भी  “हटड़ी”   का   ज़िक्र   मिलता   है।  उस  वक्त  भी   सिन्धी  समाज  एवं  सभ्यता  काफ़ी  उन्नत  तथा  समृद्ध  थी।   “हटड़ी”  का  असली  मतलब   “हट”  होता  है  अर्थात्  “दुकान”।  सिन्धी  परिवार  में  जब  लड़का  पैदा  होता  है,  उसके  जन्म  की  पहली  “दिवाली”  से  ही  हटड़ी  का  पूजन  किया  जाता है।  जिसके  पीछे  एक  ही  मक़सद  होता  है,  बच्चा  बड़ा  होकर  अच्छा,  बड़ा  व  सफ़ल  व्यापारी  बने।  माँ  लक्ष्मी  उसके व्यापार  उद्योग  धन्धे  में   उन्नति,  तरक़्क़ी  बरकत   प्रदान  करे।  दिवाली  से   प्रारम्भ  मन्दिर  नुमा  “हटड़ी”   जिसमें  माँ  लक्ष्मी  विराजमान  होती  है  की  विशेष  पूजा   अर्चना  तीन   दिन  चाँद   की  रात  तक   की  जाती  है।*
        उपरोक्त  जानकारी  देते  हुए  विश्व  सिन्धी  सेवा संगम  के  अंतर्राष्ट्रीय  सचिव  सुरेश  कुमार  थदानी  ने  बताया  कि  असत्य पर  सत्य  की  विजय,  अन्धेरे   से  उजालें  की  ओर  का  महापर्व   भगवान  श्री  राम  के  परिवार  सहित  अयोध्या  आगमन  का  “मेलावड़े”   जला  कर  मनाया  जाता  है।  माँ लक्ष्मी  से  सुख,  समृद्धि,  उन्नति,  तरक़्क़ी,  परिवार,  समाज,  राष्ट्र  की  ख़ुशहाली  के  लिए  आराधना  की  जाती  है।   “मेलावड़े”  का मतलब  “मशाल”  होता  है।  आज  के  आधुनिक  युग  में  भी  पूरे  विश्व  में  सिन्धी  समाज  द्वारा  “हटड़ी”  पूजन  एवं  “मेलावड़े”  जलाए  जाते  है।