जयपुर, 1 अक्टूबर । गांधी के विचार-दर्शन का बीज मंत्र था 'सेवा '। असत्य की अस्वीकारोक्ति और सत्य की स्वीकारोक्ति उनका मूल भाव था । साधारण व्यक्ति से महात्मा की यात्रा के पीछे उनका यह विचार था कि सत्य, अहिंसा सद्भाव और सर्व धर्म समभाव को अपने साधारण बर्ताव-व्यवहार में सम्मिलित किया । यह बात राज्य के पूर्व महाधिवक्ता और वरिष्ठ गांधीवादी विचारक गिरधारी सिंह बाफना ने राजस्थान संस्कृत अकादमी, राजस्थान सिंधी अकादमी कला एवं संस्कृति विभाग और राजस्थान राज्य भारत स्काउट गाइड द्वारा आयोजित 'गांधी के सूत्र पंचक' विषयक संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में कही ।
संगोष्ठी में गांधीवादी विचारक श्री धर्मवीर कटेवा ने विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए कहा कि गांधी भारत की आदत है और आदतें अच्छी हो, तो न छूटती है, ना बदलती है। उन्होंने उपस्थित स्काउट -गाइड से आव्हान किया कि आप सभी सेवा को और गांधी को अपनी आदत में शुमार करें ताकि ये दोनों आपके मन मे स्थायी रह सकें ।
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए पूर्व आईएएस और गांधीवादी वक्ता एस.एस बिस्सा ने कहा ही भारत की पहचान गाय, गंगा, गीता और गांधी से है। गांधी जी ने अनीतिपूर्ण कार्य और कमाई को किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया । उन्होंने सत्य को ही साधन और साध्य माना । स्काउट गाइड भी अच्छे और सच्चे जीवन के लिए गांधी के एकादश व्रत को जीवन में अपनाएं और दिन में भलाई का एक कार्य अवश्य करें ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राजस्थान संस्कृत अकादमी की पूर्व अध्यक्ष और सहायक राज्य आयुक्त स्काउट- गाइड श्रीमती सुषमा सिंघवी ने कहा के व्यक्तित्व पर चमक सत्य और सेवा से आती है । उन्होंने गांधीजी के पंच सूत्रों की विस्तृत और सरल व्याख्या की ।
कार्यक्रम में शांति एवं अहिंसा प्रकोष्ठ के समन्वयक मनीष कुमार शर्मा, मंडल मुख्य आयुक्त ज्ञानचंद मौर्य, सहायक आयुक्त नीता शर्मा, पूरन सिंह शेखावत उपस्थित थे । कार्यक्रम का संचालन संभागीय संस्कृत शिक्षा अधिकारी श्री चंद्र प्रकाश शर्मा ने किया