त्यौहार -उत्सव संस्कृति के संवाहक
ब्यावर में सिन्धी सीख रहे विघार्थियों ने चण्डु पर पंजड़े गाकर मचाई मौज
ब्यावर:- तीज-त्सौहार, उत्सव -मेले हमारी संस्कृति के संवाहक है, ये संस्कृति को जीवित रखने में बड़े सहायक है. संस्कृति से ही नई पीढ़ी संस्कारित बन सकती है. जिनकी संस्कृति जीवित है उनकी भाषा को कोई खतरा नहीं
उक्त विचार, राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद दिल्ली व भारतीय सिंधु सभा राजस्थान के संयुक्त तत्वावधान में ब्यावर नगर में चल रही सिन्धी सर्टीफिकेट कोर्स व डिप्लोमा कोर्स की क्लासो का संयुक्त रूप से पूज्य श्री झूलेलाल मंदिर नंद नगर में *चण्ड्र* उत्सव के अवसर पर कमल सुन्दर चचलानी ने व्यक्त किये.
कार्यक्रम का शुभारंभ सिन्धी शिक्षा शागिर्द मित्र कमल सुन्दर चचलानी व विघार्थी माला कांजानी, नन्ही प्रिया छतानी, वैभव मूरझानी व रिमझिम खूबानी ने इष्टदेव पूज्य श्री झूलेलाल साहिब व मां सरस्वती की छवि पर माल्यार्पण व समक्ष दीप प्रज्वलित कर किया गया|
कार्यक्रम में टुण्ड्रा क्यूं मनाते है पर भावना खूबानी ने व *अखा* क्या होता है व क्यों, कैसे होता है पर विधी लालवानी ने वीचार रखे. इस अवसर पर भूमि छत्तानी, सिमरन छत्तानी, ज्योतिका राजवानी, भव्या लालवानी ,खुशी मूरझानी, नव्या चचलानी, रमा छत्तानी, लीना मूरझानी,योगिता भम्भानी, मुस्कान पुरस्वानी, नेहा कृपलानी पायल टवरानी, ने लाल सांई के पंजड़े (भजन) गाए,उपस्थित विघार्थियों ने नाच कर मौज मचाई. ढोलक पर वैभव मूरझानी,व सिद्धि भोजवानी तथा झांझ पर युग वाधवानी का साथ रहा, कार्यक्रम का संचालन सीनिया खूबानी ने किया.