भगत कँवर राम को वेबिनार के जरिये श्रद्धांजलि अर्पित की गई
जोधपुर 31 अक्टूबर.
संत कंवर राम की शहादत की पूर्व संध्या पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए सिंधी कल्चरल सोसायटी द्वारा अखिल भारतीय स्तर के वेबीनार का आयोजन किया गया. "संत कंवर राम की शहादत का सिंध की आवाम पर असर" विषय पर आयोजित इस वेबीनार में कई शिक्षाविदों, प्रबुद्ध जनों और साहित्यकारों ने भाग लिया।
वेबीनार के आरंभ में श्री हीरो ठक्कर जो वरिष्ठ साहित्यकार है जिनको कई अवार्ड और सम्मान मिल चुके हैं उन्होंने कहा कि संत कंवर राम की मृत्यु गोली लगने से रुख स्टेशन पर हु्ई। संत कंवर राम को जो भी इनाम या पैसा मिलता था वह गरीबों में और विधवाओं में बांट दिया करते थे, जब संत कंवर राम पैदा हुए थे तभी संत हरिदास ने उनको अपना शिष्य बना भक्ति गायन सिखा दिया था. वह हमेशा यात्राएं करते रहते थे और भजन गाया करते थे. सन 1939 में जब संत कंवर राम की हत्या हुई तब सिंध में जगह- जगह हड़ताल हो गई और लोग काले कपड़े पहन कर बाहर आ गए. भले ही वह हिंदू हो यां मुसलमान। उस समय मजहब का साया इतना नहीं था, सभी लोग संत कंवर राम की शहादत पर बहुत रोए थे। पूर्व विधायक महाराष्ट्र, डाक्टर गुरमुख जगवानी, जो कि इस वक़्त सिंध में हैं, ने बताया कि संत की शहादत सिंध तथा सिंध वासियों के लिए एक तरह से कयामत का दिन था. अखिल भारतीय सिंधी बोली अं साहित्य सभा, नई दिल्ली कि महासचिव एवं पत्रकार श्रीमती अंजलि तुलसियानी ने बताया कि संत कंवर राम की गायन शैली में इतनी विशेषता थी कि जब ज्यादा बारिश होती थी तो वह राग गा कर बारिश को बंद कर आसमान साफ कर दिया करते थे, और जब बारिश नहीं होती थी तब भी राग गा कर बारिश करा दिया करते थे. एक बार तो मरे हुए बच्चे को उन्होंने अपने लोरी गायन से जीवित कर दिया था । इंदौर की लेखिका श्रीमती विनीता मोटलानी ने बताया कि संत कंवरराम की शहादत का आवाम पर इतना असर है कि उनसे जुड़ी हुई यादें मसलन हारमोनियम, कपड़े तबला, उनकी मूर्ति आदि आज तक संभाल कर रखे गए हैं, उनकी याद में आंसू बहाते हैं उन्होंने जो भी भजन गाए वह भक्ति गीत आज भी बहुत प्रसिद्ध है। श्रीमती अनिला सुंदर ने कहा कि उनके गाये हुए गीतों से उन्हें अपने नाटिकाओं को तैयार करने में मदद मिलती है,अंत में वरिष्ट रंगकर्मी श्री हरीश देवनानी ने बताया कि संत कंवर राम अपनी भक्ति के लिए बहुत ही प्रसिद्ध थे और इंसानियत उनमें कूट-कूट कर भरी हुई थी वो सदैव मानवता की सेवा मे लगे रहते थे, विधवाओं की भी वह बहुत मदद किया करते थे, हर व्यक्ति की सम्मान देते थे, अपने घर में कभी भी नहीं बैठते थे, जगह जगह घूम घूम कर लोगों की मदद किया करते थे, सिंधी लोक नाट्य परम्परा 'भगत' के प्रणेता थे. इन पर शोध कार्य भी हुए हैं. ऐसे महान कलाकार, और संत का इस प्रकार से कत्ल हो जाना एक अत्यंत दुख की बात थी।
वेबनार के अंत में सिंधी कल्चरल सोसाइटी के अध्यक्ष श्री गोविंद करमचंदानी ने सभी अदीबों को धन्यवाद देते हुए कहां कि इस प्रकार के वेबीनार हम भविष्य में भी आयोजित करते रहेंगे. और आशा व्यक्त की कि अधिक संख्या में वेबिनार से जुड़कर साहित्यकार और कलाकार लाभांवित होंगें । संचालन रमा आसनानी ने किया, सचिव श्री विजय भक्तानी ने सभी 52 प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया.
साभार :विजय भक्तानी